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श्री माताजी द्वारा अष्टलक्ष्मयों की व्याख्या

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सर्वप्रथम श्री आद्यलक्ष्मी हैं। आद्य अर्थात आदि (Primordial) लक्ष्मी । जैसे मैंने आपको बताया था, वे समुद्र से निकलीं थीं। तो ऐसा ही है। जैसे ईसा मसीह की – माँ को मेरी या मरियम कहा गया क्योंकि उनकी उत्पत्ति सागर से हुई, कोई नहीं ताकि उनको मेरी क्यों कहा गया। मेरा नाम नीरा था- अर्थात जल से उत्पन्न हुई।

दूसरी श्री विद्यालक्ष्मी हैं। ये आपको परमेश्वरी शक्ति को संभालने की विधि सिखाती हैं। ये बात अच्छी तरह समझ ली जानी चाहिए कि लक्ष्मी हैं क्या ? वे करुणाशीलता हैं, अतः वे आपको सिखाती हैं कि इस शक्ति का सुहृदतापूर्वक किस प्रकार उपयोग करें।

अब, यही आशीर्वाद आपको प्राप्त हो रहा है कि आप आद्यलक्ष्मी की शक्ति को प्राप्त करें जिसके द्वारा आप जलसम बन जाएं। जल क्या है ? जल में स्वच्छ करने की शक्ति है, जो मैं हूँ। जल के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। अतः पहला आशीर्वाद ये है कि आपके चेहरे तेजोमय हो उठते हैं। आद्यलक्ष्मी की कृपा से स्वच्छ होकर आप सभी गम्भीर चीजों को, प्रकाश को तथा विस्मृत चीजों को देख सकते हैं।

विद्यालक्ष्मी, मैंने आपको बताया, ज्ञान प्रदान करती हैं। ज्ञान, कि परमेश्वरी शक्ति को सुहृदतापूर्वक किस प्रकार संभालना है। मैं एक उदाहरण दूंगी, मैंने बहुत से लोगों को बन्धन देते हुए देखा है, उनका तरीका अत्यन्त बेढबा होता है। नहीं
इस प्रकार नहीं किया जाना चाहिए।

ये लक्ष्मी है अतः यह कार्य अत्यन्त सावधानीपूर्वक करें। आप मुझे देखें, मैं कैसे बन्धन देती हूँ। मैं इस प्रकार कभी नहीं करती । कर ही नहीं सकती। सम्मानपूर्वक, गरिमापूर्वक व सम्मानपक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं और गरिमापूर्वक यह कार्य करने का ज्ञान आपको प्राप्त होता है।

सभी कार्य गरिमापूर्वक किए जाने चाहिए, ऐसे तरीके से कि गरिमामय लगे। कुछ लोग बातचीत करते हैं परन्तु उनमें गरिमा नहीं होती। सहजयोग का ज्ञान देने वाले कुछ लोगों में भी गरिमा बिल्कुल नहीं होती और वे अत्यन्त गरिमाविहीन तरीके से बात करते हैं। परमेश्वरी ज्ञान को गरिमापूर्वक किस प्रकार उपयोग करना है, यह आशीर्वाद विद्यालक्ष्मी प्रदान करती हैं।

श्री सौभाग्य लक्ष्मी वे आपको सौभाग्य प्रदान करती हैं। सौभाग्य का अर्थ पैसा नहीं है, इसका अर्थ है पैसे की गरिमा पैसा बहुत से लोगों के पास है परन्तु यह पैसा वैसा ही है जैसे गधे के ऊपर धन का लदा होना। ऐसे व्यक्ति में आपको गरिमा बिल्कुल नहीं दिखाई देती।

सौभाग्य का अर्थ केवल पैसा ही नहीं हैं। इसका अर्थ है खुशकिस्मती, हर चीज में अच्छा भाग्य आशीर्वाद का अत्यन्त गरिमापूर्वक उपयोग ताकि आप भी आशीर्वादित हो और आपसे मिलने वाले लोगों को भी सौभाग्य का वह आशिष प्राप्त हो।

श्री अमृतलक्ष्मी अमृत का अर्थ है अमृत, जिसे लेने के बाद मृत्यु नहीं होती अर्थात चिरंजीवी होना। अमृतलक्ष्मी आपको अनन्त जीवन प्रदान करती हैं। गृहलक्ष्मी परिवार की देवी है। जरूरी नहीं कि सभी गृहणियाँ गृहलक्ष्मी हों। वे कलहणियाँ भी हो सकती हैं, भयानक महिलाएं भी हो सकती है। परिवार के देवता का निवास यदि आपके अन्दर है, केवल तभी आप गृहलक्ष्मियाँ है अन्यथा नहीं।

इसके बाद श्री राज्यलक्ष्मी हैं दे राजाओं को गरिमा प्रदान करती हैं। राजा यदि नौकर की तरह से व्यवहार करे तो उसे राजा नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें अत्यन्त सम्मानपूर्वक व्यवहार करना होगा। राजा की गरिमा, उसका प्रताप, राजलक्ष्मी का वरदान है।

परन्तु सहजयोगी राजा नहीं होता, वह अत्यन्त शानदार तरीके से चलता है, भव्य तरीके से कार्य करता है, और अत्यन्त भव्यतापूर्वक लोगों से व्यवहार करता है। अपने सभी कार्यों में वह इतना गरिमामय होता है कि लोग सोचते हैं कि देखो राजा आ रहा है।


श्री सत्यलक्ष्मी – सत्यलक्ष्मी के माध्यम से आपको सत्य की चेतना प्राप्त होती है। उसके अतिरिक्त भी सत्यचेतना विद्यमान है परन्तु इस सत्य को आप अत्यन्त भव्य तरीके से प्रस्तुत करते हैं। ये सत्य है, आप इसे स्वीकार करें, ऐसे नहीं। सत्य से आपने लोगों को चोट नहीं पहुँचानी। फूलों में रखकर आपने लोगों को सत्य देना है। ये सत्यलक्ष्मी है।

निःसन्देह ये सभी लक्ष्मीतत्व हमारे हृदय में स्थापित शक्तियाँ हैं परन्तु वास्तव में इनकी अभिव्यक्ति हमारे मस्तिष्क में होनी चाहिए। मस्तिष्क विराट है, यह विष्णु है जो विराट बनते हैं। अतः ये सभी शक्तियाँ, विशेषरूप से यह शक्ति (सत्यलक्ष्मी) मस्तिष्क में है।

अतः मस्तिष्क स्वतः इस प्रकार कार्य करता है कि लोग सोचते हैं कि यह कोई विशिष्ट व्यक्तित्व है। सहजयोगी को हमेशा समझ होती है कि आनन्द किस प्रकार उठाना है। सहजयोगी कभी चिन्तित नहीं होता। आपको भी आनन्द लेने के योग्य होना चाहिए। मान लो आप कोई बेढबी, या हास्यास्पद चीज़ देखते हैं तो आपको हँसना और आनन्द लेना चाहिए। ये बहुत कठिन कार्य है। बेढबी चीज का आनन्द लेना ।

कोई यदि अटपटा या भद्दा हो तो उस पर गुस्सा नहीं करना चाहिए, उसे आनन्ददायक बना लेना चाहिए। ये महानतम चीज़ है, मेरे विचार से यह महानतम आशीर्वाद है जो वे आपको प्रदान करती हैं- आनन्द लेने की शक्ति । अन्यथा आप जो चाहे प्रयत्न करें, लोग किसी चीज़ का आनन्द नहीं लेते, क्योंकि इतने अहंवादी हो गए हैं कि उनके मस्तिष्क में कुछ घुसता ही नहीं। उन्हें तो किसी छड़ी से गुदगुदाना पड़ेगा।

श्री योगलक्ष्मी जो आपको योग प्रदान करती हैं ये शक्ति आपके अन्दर हैं। – आपके अन्तःस्थित लक्ष्मी की शक्ति अर्थात आप अन्य लोगों को योग प्रदान करते हैं। जब आप अन्य लोगों को योग की शक्ति प्रदान करते हैं, मेरा अभिप्राय है कि जब आप अपनी योग शक्ति का उपयोग करते हैं तब बन्दर, गधे या घोड़े की तरह से व्यवहार नहीं करते।

गरिमापूर्वक ये कार्य करते हैं। इस प्रकार इस कार्य को करें कि यह अत्यन्त गरिमामय हो, अर्थात अत्यन्त भद्र, गरिमामय एवं भव्य तरीके से। तो यह इस प्रकार है। अब जब आपने इस प्रकार इसकी स्तुति गान किया है, इस शक्ति से आपको आशीर्वादित कर दिया गया है। अब यदि आप चाहें तो भी गरिमाविहीन आचरण नहीं कर सकते। आपको स्थिर कर दिया गया है।

प. पू. माताजी, कोमो, इटली, २५.१०.१९८७

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